Saturday, September 29, 2012

मेरा प्यार लुटेरा था

प्रेम हमेशा अद्भुत होता है, अप्रतिम | रूठना, मनाना, हँसाना, रिझाना ये सब तो प्राय होते हैं पर अक्सर ये सब मौन परिवेश में बदल जाता है | प्रेम में कोई बुरा नहीं होता, बस प्रतिकूल स्तिथि और हमारी नासमझी उस रेत के घरोंदे पर सागर की लहरों सी चली आतीं हैं | कब हमारी "छोटी-छोटी गलतियाँ" उस आशियाने का रूप बदल दें, पता ही नहीं चलता | झटका तब लगता है जब लहरें पूरे वेग से सब कुछ तबाह कर चुकी होतीं हैं |

कल कोई पुरानी ऑडियो पल्ले पड़ गई, कोई ४-५ साल पुरानी | २-३ बार सुनकर सोया, आवाज़ बहुत अच्छी थी, पर पहचान नहीं पा रहा था | हाँ, न जाने कैसे ?? अब आगे क्या बोला था, क्या बोलना था, सब कुछ पता था | सचमुच वक्त हर जख्म पर मरहम लगाना जानता हैं |
फिर बहुत सी "पेंटिंग्स" देखीं ; जब कविता नहीं, 'पेंटिंग' करता था |
फिर वो 'पल' छूट गया, पेंटिंग छूट गई, लोग छूट गए |
एकाकी आदमी एकाकी हो गया और कविता उसकी संगिनी |

तब की एक कोई छोटी-सी कोशिश, छोटी-सी कविता :

मेरे सारे घर खाली थे, ख़ामोशी का डेरा था |
मेरा दिल तो मेरा दिल है, मेरा प्यार लुटेरा था ||

एक सपना बनकर आया था वो, मेरे दिल पर छाया था,
और वो चाँदनी-सा सुन्दर मुखड़ा मेरे मन को भाया था |
पर किस्मत भी क्या साँप रही, एक अज़नबी सपेरा था |
मेरा दिल तो मेरा दिल है, मेरा प्यार लुटेरा था ||

कई वक्त लगा, कई साल लगे, ये ताना-बाना बुनने में,
उस सुंदरी मनमोहिनी से प्यार के लब्ज़ सुनने में |
दिल में था इंतज़ार बहुत, पर उदासियों का डेरा था |
मेरा दिल तो मेरा दिल है, मेरा प्यार लुटेरा था ||

एक दिन अचानक, उगते सूरज से एक किरण आई,
और लगा उसे प्यार की हर पहेली समझ आई |
उसको भी था प्यार हाँ मुझसे, यादों में मेरा बसेरा था |
मेरा दिल तो मेरा दिल है, मेरा प्यार लुटेरा था ||

Tuesday, September 18, 2012

एक कवि सम्मेलन के दौरान (हिंदी दिवस - १४ सितम्बर २०१२)




(1) चंद अल्फाज़ उर्दू के बताएँगे भला कैसे ?

चंद अल्फाज़ उर्दू के बताएँगे भला कैसे ?
गज़ल तालीम है मेरी, या मैं कह नहीं सकता |

पहाड़ों से निकलता हूँ, हाँ दरिया नाम है मेरा,
समुन्दर कह रहा था कल, कि मैं बह नहीं सकता |

मुझपे मंदिर बनाओ तुम, मुझपे मस्जिद बनाओ तुम,
बुनियादी काम है मेरा, तोड़ो मैं ढह नहीं सकता |

जिस्म पर ज़ख्म खाऊँगा, थोड़ी मरहम लगाऊँगा,
दिलों में घात ना करना, मैं अब सह नहीं सकता |

अमीरों का हुनर देखो, ये दौलत क्या सिखाती है?
कोशिश है मुँह-भराई की, मगर चुप रह नहीं सकता |

(2) शौक अब भी पुराने रखता हूँ

मैं यूँ तो शौक अब भी पुराने रखता हूँ
तेरी खातिर खुद की जिद पे पैमाने रखता हूँ |

बस जरा मजबूर हूँ, इश्क में मगरूर हूँ,
जैसे-जैसे करती है, सारे बहाने रखता हूँ | 

ऐरे-गैर शायर हो गए, घूँट पीके जाम के,
उनसे नशीला जाम क्या ? मैखाने रखता हूँ |

(3) गज़लों में अपनी तुम, मेरा जब नाम लिखना

गज़लों में अपनी तुम, मेरा जब नाम लिखना,
वही मौसम, वही दरिया, वही पैगाम लिखना |

खत तो मिलते रहते हैं, इश्क औ मोहब्बत के,
जिस भी खत से आए खुशबू, मेरा ईनाम लिखना |

कैसे खुश रहता हूँ, उस साकी की बातों पर,
टूट जाओ खुद ही, तो नशीला जाम लिखना |

सच्चाई को झूठ, समझने वाले ज्यादा हैं,
तुम शाम को सुबह, सुबह को शाम लिखना |

कतारों में मिलेंगे, तुझको तेरे चाहने वाले,
ज़रा सी चूक करना, मुझे बदनाम लिखना |

कहीं गफ़लत न हो जाए, ए सल्तनत वालों,
खास को खास, आम को आम लिखना |

© अनन्त भारद्वाज
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