कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि
हूँ |
जो स्वर करुण रुदन में,
बेबस होकर चीख रहे थे |
जो हँसते-हँसते चेहरों में भी,
रोते - रोते दीख रहे थे |
उन निहित अकेले भावों को,
उन संबंधों, अलगावों को,
शब्दों का घर देने वाली,
छवि हूँ, छवि हूँ, मैं छवि
हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि
हूँ |
जो सिक्कों को अनमोल बताये,
पर रुपयों का मोल न जाने |
जो रिश्तों की पहली कक्षा
में,
पर माँ की हर आहट पहचाने |
उन नन्हे - नन्हे हाथों की,
उन कल आने वाले आघातों की,
कोमल उज्जवल सी दिखने वाली,
भवि हूँ, भवि हूँ, मैं भवि
हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि
हूँ |
जो आदम, आदम की परिभाषा से,
मानव तक पहुंचे हैं |
जो आदम, आदम की परिभाषा से,
दानव तक पहुंचे हैं |
उन आड़े-तिरछे चेहरों पर,
उन हर शतरंजी मोहरों पर,
आग उगलता, पल-पल जलता,
रवि हूँ, रवि हूँ, मैं रवि
हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि
हूँ |
सादर : अनन्त भारद्वाज