मेरी यादों को वो थपकी, दे दे के सुलाती है
पल भर मुझको याद करे, पल भर
में भुलाती है,
मेरी यादों को वो थपकी, दे -
दे के सुलाती है |
वो प्रेम का पहला था पन्ना
जो घर तक जाता था,
फिर सकुचाते-शरमाते मेरी
जेब से बाहर आता था,
उस पहले पन्ने को उसने खत
का नाम दिया होगा,
फिर घूंट-घूंट करके उसने
लब्जों का जाम पिया होगा,
वो जाम वहीँ पर थम जाता तो
भी तो अच्छा था,
अब खत में खुद ही जलती है
और उन्हें जलाती है |
मेरी यादों को वो थपकी, दे
- दे के सुलाती है |
वो उसका शायद हिम्मत करके
मुझसे मिलना था
अजी मिलना क्या था वो तो
होठों का सिलना था
गर उस पर भी मैं शरमा जाता तो फिर क्या
होता
अजी होना क्या, मैं बोला
फिर जैसे कोई रट्टू तोता
तब याद है घंटों खूब हंसी
थी वो उस रट्टू तोते पर
अब खुद भी कितना रोती है और
मुझे रुलाती है |
मेरी यादों को वो थपकी, दे -
दे के सुलाती है |
मुझको तो कुछ भी याद नहीं
पर उसकी थी ड्यूटी
तारीखें छिपकर लिखती थी वो
क्यूटी - सी ब्यूटी
जब कभी अकेली हो जाती,
दरिया सा बहता था
इस दो हंसों वाले जोड़े को
पास रखो कहता था
अब लाख दफा फटकार चुकी कि
दूर रहो मुझसे
फिर क्यूँ पगली उन हंसों के
जोड़ों को सजाती है ?
मेरी यादों को वो थपकी, दे -
दे के सुलाती है |