Tuesday, December 13, 2011

तब भी एक जादुई घड़ा था

मेरे फसानों में तब भी एक जादुई घड़ा था,
कोई लिख रहा था खत, कि जवाब इसमें पड़ा था |

कतारें ख़त्म हो गई थीं मेरे सच्चे गवाहों की,
फिर भी ज़ालिम, शक की इन्तहा पे अड़ा था |

जिस पत्थर को रखा था मैंने इबादत के लिए,
शौक भी देखो अनोखा, उनके पावों में जड़ा था |

प्यार थोडा कम किया अपने एक बेटे को शायद ,
फिर क्यूँ दूजा , घर बाँटकर सबसे लड़ा था ?

इंसान न सही गाँव में कुछ मवेशी तो बचते,
अब ना सुनूंगा तेरी खुदा, बादल बनाये खड़ा था !!

1 comment:

seema tomar said...

इंसान न सही गाँव में कुछ मवेशी तो बचते,
अब ना सुनूंगा तेरी खुदा, बादल बनाये खड़ा था............nanya aur alag ....gr8888 anant ji

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