रात कैसे लड़े
सवेरा रोज देता है नसीहतें
रात के खिलाफ़
मगर ये रात की बेबसी है कि वो
करे भी तो क्या करे
उसके साथ हैं कौन ?
बस ये गए गुज़रे
रात होती है तो
तमाम फकीर आराम से सो लेते हैं
और
तमाम इश्कज़ादे मुंह ढक के रो लेते हैं
ये बात और है
उन्हें चाँद से मोहब्बत की
ये बीमारी दिन में लगी थी
रात होती है तो
किसी की कोई
तस्वीर किसी को संभाल लेती है
और
उस तरह की औरत
अपने पेट को पाल लेती है
ये बात और है
कि उसने सुन लिया था खुदखुशी से बेहतर है
जिंदगी से जंग जारी रखना
रात होती है तो
एक माँ अपने बच्चे को लोरी सुनाती है
और
एक अपने बच्चे को सितारे से बुलाती है
ये बात और है
कि उसे डर है उन पहरेदारों से
जो जीते हुए आदमियों को उठा लेते हैं
रात कैसे लड़े
अब इस सवेरे से
लड़ने वाले तो काम पर निकल गए
मुँह-अँधेरे से
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