Monday, November 21, 2011

" तेरी प्रतीक्षा "



अपने गीत " प्रतीक्षा " के अनुरोध पर मेरे आभासी काव्य संग्रह " प्रतीक्षा " से दूसरा गीत

कर रहा हूँ प्रतीक्षा मैं तेरी प्रिये ,
क्या तेरी स्थिति भी है ऐसी प्रिये?


प्रेम दर प्रेम परतें है चढ़ने लगी.
तू यौवन के रंगों में ढलने लगी

यूँ तो एक जन्म से ही तू मेरे साथ है.
सात जन्मों की गांठें  हो क्या बात है?


तेरा मेरा मिलन हो ये चाहत प्रिये,
दे रहा हूँ मैं देवों को दावत प्रिये.
कर रहा हूँ प्रतीक्षा......................

वर्ष और माह अब रीते लगने लगे,
झूले सावन के भी फीके पड़ने लगे


मेघों के इंतजार में मैं धरती हो गया,
आँखों  में स्वप्न लिए सागर सा सो गया..


वंदना में शीघ्र तुझे मांगता हूँ प्रिये,
विवशता तेरी जानता हूँ प्रिये..
कर रहा हूँ प्रतीक्षा.....................

सादर : अनन्त भारद्वाज

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