वफ़ा की परछाइयों से ,
वो आंधियां आज भी चल रही थी ..
मैंने ये भी न पूछा चिरागों से ,
आज तलक कैसे जल रहे हो ...
मैंने ये भी न पूछा चिरागों से ,
आज तलक कैसे जल रहे हो ...
एक अरसे से नींद की,
गोलियां भी असर नहीं दिखा रही थी ...
मैंने ये भी न पूछा ख्वाबों से ,
खुली आँखों में कैसे पल रहे हो ...
गोलियां भी असर नहीं दिखा रही थी ...
मैंने ये भी न पूछा ख्वाबों से ,
खुली आँखों में कैसे पल रहे हो ...
जिस्म की ये मिटटी ,
आंसुओं में भी पत्थर हो रही थी ..
मैंने ये भी न पूछा खुद से ,
वो तो नहीं था तेरा फिर क्यूँ हाथ मल रहे हो ...
आंसुओं में भी पत्थर हो रही थी ..
मैंने ये भी न पूछा खुद से ,
वो तो नहीं था तेरा फिर क्यूँ हाथ मल रहे हो ...
आज मेरे ज़ज्बातों की ,
उमर पूरी हो रही थी ...
मैंने ये भी न पूछा सांसों से ,
बिना पैरों के कैसे चल रहे हो ...
उमर पूरी हो रही थी ...
मैंने ये भी न पूछा सांसों से ,
बिना पैरों के कैसे चल रहे हो ...
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