Tuesday, March 13, 2012

स्मृतियाँ

उन प्यार करने वालों के नाम जिन्हें अपनी बीती ग़ज़ल हर रोज याद आती है... 
और दिल भूलना चाहता है उस परी को; पर आँखें भी.. क्यूँ  हर  दिन अज़ीब  से मंज़र दिखाती है, कि उसकी यादों की ओढ़नी रोज़ कुछ घटनाओ  के सहारे उडी चली आती है | उन्ही छोटी - छोटी प्यार भरी घटनाओ को समेटती  एक कविता जो मैंने अपनी इंजीनियरिंग के दौरान लिखी थी |

भारत तकनीकि संस्थान, मेरठ ( उत्तर प्रदेश )
 में कविता "स्मृतियाँ" का काव्य पाठ

वीडियो भी है, 

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हर आस मिटा दी जाती है, हर सांस  सुला दी जाती है |
फिर भी यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ चली आती है ||
उन यादों में खो जाता हूँ, बस तू ही दिखाई देती है,
ठीक उसी पल दरवाजे पर एक आहट सी सुनाई देती है |
हम बिस्तर  से दरवाजे तक दौड़े - दौड़े फिरते हैं ,
पर वो तो हवा के झोकें थे जो मजाक बनाया करते हैं |
दिल घर की छत के एक किनारे बैठा आहें भरता है,
दो हंसो का जोड़ा नदिया के पानी में क्रंदन करता है |
जब हंसो के करुण विनय से नदिया तक भर जाती है,
तब यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ  चली आती है ||


उन भूली - भटकी यादों को कैसे मैंने बिसराया है,
तेरे हर ख़त को मैंने उस उपवन में दफनाया है |
उन ख़त के रूठे शब्दों  से पुष्प नहीं खिल पाते है,
शायद तेरे भेजे गुलाब मुझे नहीं मिल पाते है |
जन्मदिवस की संध्या पर जब जश्न मनाया जाता है,
सारा घर भर जाता है हर कक्ष सजाया जाता है |
जब वो भुला चुकी है मुझको तो हिचकी क्यूँ आ जाती है ?
तब यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ  चली आती है ||


अर्धरात्रि के सपनों में वो सहसा ही आ जाती है,
मेरे सुन्दर समतल जीवन में तरल मेघ सी छा जाती है |
प्रथम बिंदु से मध्य बिंदु तक  मुझे रिझाया करती है,
मध्य बिंदु से अंत तक वो शरमाया करती है |
मैं अक्सर खिल जाता हूँ जब वो अधरों को कसती है,
बिलकुल बच्ची  सी लगती है जब वो होले से हँसती है |
जब रोज़ सवेरे उसकी बिंदिया टुकड़ों  में बँट जाती है,
तब यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ  चली आती है ||


शायद रूठ गयी है मुझसे या फिर कोई रुसवाई है,
तेरे पाँव की पायल मैंने अपने आँगन में पाई है |
आज अचानक खनकी पायल मुझको यूँ समझती है,
अब और खनक ना पाऊँगी यह कहकर मुझे रुलाती है |
और गली के नुक्कड़ पर जब कुछ बच्चे खेलने आ जाते है,
घंटों हुई बहस में एक - दूजे का सर खा जाते है |
जब वो छोटी लड़की उन सबको भाषण सा दे जाती है,
तब यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ  चली आती है || 


कैसे मैंने उस नीले फाटक वाले घर का पता भुलाया है?
क्यूँ नहीं पहले ख़त को उसने तकिये के नीचे सुलाया है?
मैंने हर शाम उन उपहारों की होली जलती देखी है,
उन उपहारों के साथ रखी वो कलियाँ ढलती देखी है |
हम बंद अँधेरे कमरे में कविता तक लिख लेते है,
पर कलम कागज के मध्य शब्द तेरे ही सुनाई देते है |
जब प्रणय गीत लिखते - लिखते कलम अचानक रुक जाती है,
तब यादों के पन्नो से कुछ स्मृतियाँ  चली आती है ||

1 comment:

prashant love delhi said...

NICE & HEART TOUCHING LINES...
I REALLY WANT YOU TO GIVE A BEST OF LUCK & GOOD WISHES TO CONTINUE TO PROVIDE YOUR THOUGHTS THROUGH THESE LINES....

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