Saturday, August 06, 2011

“ चला एक रोज़ महखाना ”

तुझे जितना भुलाता हूँ, तू उतना याद आती है,
तेरी यादों को लेकर मैं , चला एक रोज़ महखाना  .

मैं पंछी हूँ, परिंदा  हूँ, पर ये ना सोच लेना तुम ,
कि मौसम के बदलते ही  मुझे एक रोज़ उड़ जाना ,
तेरी यादों को लेकर  मैं .............

ज़िन्दगी साथ जीने के वादों का क्या सिला होगा ?
जो तुमसे दूर होकर के मुझे एक रोज़ मार जाना .
तेरी यादों को लेकर  मैं .............

जो वो मुझको समझती है कोई जुगनू पतंगा ,
वो क्या जाने की चौखट का दिया है एक अफसाना  .
तेरी यादों को लेकर  मैं .............

तेरी राहों को यूँ तकते मेरी सारी उम्र ढल गई ,
ना यूँ खामोश  रहकर के मुझे अब और तडपना .
तेरी यादों को लेकर  मैं .............

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