एक पंक्ति जो शायद आज-कल प्रत्येक लड़की कहती है “सारे लड़के एक जैसे
होते है” ; मेरे मन में अक्सर खटकती है | तब पहली बार पुरुष के समर्थन में और
इस पंक्ति के विरोध में एक गीत लिखा | गीत को पढ़ने से पहले कुछ इसकी भूमिका के
बारे में कह दूँ, ताकि बात सीधी-सीधी आप तक पहुँचे | गीत के माध्यम से एक नवयुवक
लड़कियों द्वारा किये गए भावनात्मक शिकार से बचना चाहता है, जो कहीं न कहीं उन्हें
रिझाने का प्रयास करतीं है | परन्तु वह प्रकृति के नियमों से भी वाकिफ़ है | इसलिए
अंत में एक समझौता करता है कि कुछ तुम बदलो, कुछ हम | प्रेम को एक आदर्श रूप में
प्रस्तुत किया जाये, ताकि उसमें प्रदर्शन नहीं, दर्शन दिखे, लोगों को सीख मिले और
नयी संस्कृति को आयाम |
गीत प्रस्तुत है -
आँसू जब-जब गिरेंगे,
ये बुझ जायेगा |
मैं पुरुष हूँ सदा,
मेरे मन की व्यथा,
क्यूँ इतिहास में हर
कली को ठगा?
न फूलों का मोह, फिर
क्यूँ भँवरा बनूँ,
ये कलंक है जो आज
मिट जायेगा |
यूँ न दीपक जला, मन
मेरा मनचला,
आँसू जब-जब गिरेंगे,
ये बुझ जायेगा |
न पतंगे उड़ा, ना हीं
पल्लू घुमा,
एक तपस्वी भी कब तक
बचा था भला?
जो उर्वशी-सी लगीं,
मेनका-सी सजीं,
तो निमंत्रण यूँ
मुझको फिर मिल जायेगा |
यूँ न दीपक जला, मन
मेरा मनचला,
आँसू जब-जब गिरेंगे,
ये बुझ जायेगा |
प्रेम यदि हो
प्रिये, भाव-समर्पण प्रिये,
जब हो मीरा दिवानी,
राधे रानी प्रिये,
अर्चना तब करूँ, बनके थाली सजूँ
सैकड़ो ज्योति का दीप
जल जायेगा |
यूँ न दीपक जला, मन
मेरा मनचला,
आँसू जब-जब गिरेंगे,
ये बुझ जायेगा ||
सादर : अनन्त भारद्वाज
2 comments:
last stanza shaandaar hai.. bandhuvar!
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