(1) चंद अल्फाज़ उर्दू के बताएँगे भला कैसे ?
चंद अल्फाज़ उर्दू के बताएँगे भला कैसे ?
गज़ल तालीम है मेरी, या मैं कह नहीं सकता |
पहाड़ों से निकलता हूँ, हाँ दरिया नाम है मेरा,
समुन्दर कह रहा था कल, कि मैं बह नहीं सकता |
पहाड़ों से निकलता हूँ, हाँ दरिया नाम है मेरा,
समुन्दर कह रहा था कल, कि मैं बह नहीं सकता |
मुझपे मंदिर बनाओ तुम, मुझपे मस्जिद बनाओ तुम,
बुनियादी काम है मेरा, तोड़ो मैं ढह नहीं सकता |
बुनियादी काम है मेरा, तोड़ो मैं ढह नहीं सकता |
जिस्म पर ज़ख्म खाऊँगा, थोड़ी मरहम लगाऊँगा,
दिलों में घात ना करना, मैं अब सह नहीं सकता |
अमीरों का हुनर देखो, ये दौलत क्या सिखाती है?
कोशिश है मुँह-भराई की, मगर चुप रह नहीं सकता |
(2) शौक अब भी पुराने रखता हूँ
मैं यूँ तो शौक अब भी पुराने रखता हूँ
तेरी खातिर खुद की जिद पे पैमाने रखता हूँ |
तेरी खातिर खुद की जिद पे पैमाने रखता हूँ |
बस जरा मजबूर हूँ, इश्क में मगरूर हूँ,
जैसे-जैसे करती है, सारे बहाने रखता हूँ |
ऐरे-गैर शायर हो गए, घूँट पीके जाम के,
उनसे नशीला जाम क्या ? मैखाने रखता हूँ |
(3) गज़लों में अपनी तुम, मेरा जब नाम लिखना
गज़लों में अपनी तुम, मेरा जब नाम लिखना,
वही मौसम, वही दरिया, वही पैगाम लिखना |
खत तो मिलते रहते हैं, इश्क औ मोहब्बत के,
जिस भी खत से आए खुशबू, मेरा ईनाम लिखना |
कैसे खुश रहता हूँ, उस साकी की बातों पर,
टूट जाओ खुद ही, तो नशीला जाम लिखना |
सच्चाई को झूठ, समझने वाले ज्यादा हैं,
तुम शाम को सुबह, सुबह को शाम लिखना |
कतारों में मिलेंगे, तुझको तेरे चाहने वाले,
ज़रा सी चूक करना, मुझे बदनाम लिखना |
कहीं गफ़लत न हो जाए, ए सल्तनत वालों,
खास को खास, आम को आम लिखना |
© अनन्त भारद्वाज
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